बहराइच रैली में सावित्री फुले और अखिलेश के मंच पर चंद्रशेखर की एंट्री! पढ़िए इनसाइड स्टोरी
भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सांसद और कांशीराम बहुजन मूलनिवासी पार्टी की अध्यक्ष सावित्री बाई फुले ने आने वाली 26 नवंबर को यूपी के बहराइच में एक बड़ी रैली बुलाई है। इससे पहले हाल ही में सावित्री बाई फुले ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से लखनऊ में मुलाकात की थी और कहा था कि अखिलेश यादव इस रैली में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे। माना जा रहा है कि यह रैली छोटे दलों को साथ लेने की अखिलेश यादव की ही रणनीति का हिस्सा है। अब इस रैली को लेकर एक और बड़ी जानकारी सामने आई है। दरअसल, खबर है कि सावित्री बाई फुले की इस रैली में मंच पर आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद भी मौजूद होंगे। आइए जानते हैं कि क्या हैं इस रैली के सियासी मायने?
क्या हैं बहराइच रैली के सियासी मायने?
26 नवंबर को बहराइच में होने वाली यह रैली सियासी तौर पर काफी अहम मानी जा रही है। दरअसल अखिलेश यादव लगातार यह बयान दे रहे हैं कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में वो बड़े दलों के साथ गठबंधन करने के बजाय, छोटे दलों को साथ लेंगे। इसी कड़ी में हाल ही में अखिलेश यादव ने ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ भी गठबंधन का ऐलान किया। अब बहराइच की रैली को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश यादव अपने मिशन 2022 के तहत दलित वोटों में सेंधमारी की तैयारी में हैं।
यूपी में सियासी हवा बनाने की कोशिश
यूपी की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम बताते हैं, ‘बहराइच रैली में मंच पर सावित्री बाई फुले और अखिलेश यादव के साथ चंद्रशेखर आजाद भी मौजूद होंगे। हालांकि अभी तक चंद्रशेखर ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि ओमप्रकाश राजभर की तरह वो भी अखिलेश यादव के साथ गठबंधन करेंगे, लेकिन इस रैली के जरिए यूपी में एक सियासी हवा बनाने की कोशिश है। हाल के घटनाक्रमों को देखें तो चंद्रशेखर ने यूपी चुनाव को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ाई है और उनके साथ जुड़ने वाले युवाओं की संख्या भी बढ़ी है।’
गठबंधन टूटने से निराश वोटर को साधने की कोशिश
हालांकि, फिलहाल दूर-दूर तक ऐसे संकेत नहीं मिल रहे, जिनके आधार पर कहा जाए कि चंद्रशेखर आजाद यूपी में बहुजन समाज पार्टी के विकल्प के तौर पर उभर सकते हैं, लेकिन उनके साथ जुड़ने वाले नेताओं में बड़ी संख्या में वो लोग शामिल हैं, जो कभी बीएसपी का हिस्सा रह चुके हैं। इसके अलावा दलितों के मुद्दे पर चंद्रशेखर के मुखर रवैये ने भी उन्हें सुर्खियां दिलाई हैं। ऐसे में बहराइच रैली के जरिए अखिलेश यादव की एक कोशिश, बीएसपी के उस वोटर को तोड़ने की भी है, जो 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सपा-बसपा गठबंधन टूटने से निराश हुआ था।
लोकसभा चुनाव में हार के बाद अखिलेश ने बदली रणनीति
सैयद कासिम के मुताबिक, ‘2019 के लोकसभा चुनाव में हार और सपा-बसपा गठबंधन टूटने के बाद से ही अखिलेश यादव ने अपनी चुनावी रणनीति में दलित वोटों का विशेष तौर पर ध्यान रखा है। गठबंधन टूटने को लेकर जहां मायावती कई बार सपा पर हमला बोल चुकी हैं, वहीं अखिलेश यादव अभी तक इस मुद्दे को लेकर बीएसपी प्रमुख पर कोई भी आक्रामक बयान देने से बचते रहे हैं।’ अखिलेश यादव की इस बदली हुई रणनीति का ही असर है कि कभी बसपा के दिग्गजों में शुमार रहे वीर सिंह जाटव और अंबिका चौधरी सहित कई बड़े नेता सपा में शामिल हो चुके हैं। हाल ही में बसपा के 6 बागी विधायकों ने भी सपा की सदस्यता ली है। इसके अलावा पूर्वाचल की ओबीसी राजनीति में बड़े चेहरे माने जाने वाले लालजी वर्मा, रामअचल राजभर और आरएस कुशवाहा भी सपा में शामिल हो चुके हैं।