उत्तर प्रदेशलखनऊ

बाल साहित्य से बच्चों को संस्कारित करना रही है हमारी परम्परा : डॉ. सदानन्द प्रसाद गुप्त

  • उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में मंगलवार को हुआ बाल साहित्यकारों का सम्मान

लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से मंगलवार को अभिनन्दन पर्व एवं कहानी, कविता, निबंध प्रतियोगिता पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित हुआ। समारोह संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सदानन्दप्रसाद गुप्त की अध्यक्षता में हुआ। समारोह में मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार, डॉ. सूर्यप्रसाद दीक्षित थे। इस अवसर पर पुरस्कृत होने वालें सात बाल साहित्यकारों में डॉ. मंजरी शुक्ला को सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान, श्याम पलट पाण्डेय को सोहन लाल द्विवेदी बाल कविता सम्मान, डॉ. अनिता भटनागर जैन अमृत लाल नागर बाल कथा सम्मान, श्याम नारायण श्रीवास्तव को लल्ली प्रसाद पाण्डेय बाल साहित्य पत्रकारिता सम्मान, रवीन्द्र प्रताप सिंह डॉ. रामकुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान, सुश्री कल्पना कुलश्रेष्ठ को जगपति चतुर्वेदी बाल विज्ञान लेखन सम्मान एवं सिराज अहमद को उमाकान्त मालवीय युवा बाल साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मानित बाल साहित्यकारों में प्रत्येक को इक्यावन हजार रुपए की धनराशि, उत्तरीय एवं प्रशस्ति पत्र दिया गया।

इसके अलावा कहानी, कविता एवं निबन्ध प्रतियोगिता पुरस्कार के लिए चयनित युवा रचनाकारों में अभिषेक ठाकुर ‘अधीर‘, द्वारिका नाथ पांडेय, मृगांक मिश्रा, प्रिया सिंह, अमित कुमार, प्रभात कुमार राय, उत्कर्ष अग्निहोत्री, उत्कर्ष कौल, कृतिका सिंह, शिवांश पाण्डेय, विभा वैश्य, गौसिया परवीन एवं ऋषभ जैन को पुरस्कार धनराशि, उत्तरीय, प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया। इसमें प्रथम पुरस्कार सात हजार, द्वितीय पांच हजार व तृतीय चार हजार रूपए का है। इसके दो सांत्वना पुरस्कार दो-दो हजार रूपए के हैं। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा हिन्दी साहित्य देशकाल और परिस्थिति के अनुसार विस्तृत होता जा रहा है। बाल साहित्य, युवा साहित्य और प्रौढ़ लेखन समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण होता है। परिमाण में बाल साहित्य बहुत अधिक लिखा जा रहा है।

उन्होंने कहा कि यदि बच्चे को बचा लिया जाय तो अच्छे समाज का निर्माण किया जा सकता है। बाल रूप को समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है क्योंकि बाल रूप में मनुष्य निष्कपट होता है। मानवीय राग-विराग के विश्लेषण के लिए बाल मनोविज्ञान का अध्ययन करना चाहिए। लेखक का तादात्म्य बाल्यावस्था के साथ जुड़कर बाल साहित्य रच सकता है। बाल साहित्य कौतुक लेखन से भी जुड़ा है। आधुनिक संसार में नवाचार को दृष्टिगत रखते हुए बाल साहित्य में परिवर्तन करना महत्वपूर्ण है। बाल पात्रों के लिए बाल नायक भी होना चाहिए। संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सदानन्दप्रसाद गुप्त ने कहा कि हिन्दी संस्थान हिन्दी भाषा और साहित्य के माध्यम से प्रतिभाओं की खोज करने का प्रयास करता है। प्रतिभा के अंकुरण एवं प्रस्फुटन का माध्यम इस प्रकार की प्रतियोगिताएँ है। सभी प्रतिभाओं से उनकी मौलिकता को प्रकट करने का माध्यम साहित्य को बनाएँ।

उन्होंने कहा कोई भी रचनाकार पुरस्कार के लिए नहीं लिखता वह अन्तः प्रेरणा से साहित्य सृजन कंरता है। बाल साहित्य अपेक्षाकृत कम चर्चित रहा है, परन्तु वह बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। बाल साहित्य विविध विधाओं में लिखा जा रहा है। बच्चों के लिए रचना करना अत्यन्त कठिन है। प्रेरक बाल साहित्य द्वारा बच्चों को संस्कारित करना हमारी परम्परा रही है। दादी-नानी की कहानियों की क्रम कुछ टूटा है जिससे बच्चों में संस्कार दिये जाने का महत्वपूर्ण कार्य कुछ बाधित हुआ है। यदि उत्कृष्ट बाल साहित्य किशोर मन तक पहुँचेगे तो उनका मन उल्लासित हो सकता है। बाल साहित्य भाषा की अतुलनीय सम्पदा है। उ.प्र. हिन्दी संस्थान के निदेशक पवन कुमार ने आए अतिथियों को स्वागत करते हुए कहा कि हिन्दी संस्थान के उद्देश्यों में एक साहित्यकारों को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें सम्मानित करना है। तीन वर्षों से हिन्दी संस्थान कहानी, कविता एवं निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन कर युवा रचनाकारों को अपनी सार्थक अभिव्यक्ति करने का अवसर देता है। कार्यक्रम का संचालन संस्थान की प्रधान सम्पादक डॉ. अमिता दुबे ने किया।

संबंधित समाचार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button