सोशल मीडिया पर उपलब्ध कृषि से जुड़ी जानकारी को उपयोगी बनाने पर किया शोध
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लखनऊ। सोशल मीडिया पर उपलब्ध कृषि से जुड़ी जानकारी असल में किसानों के लिए कितनी फायदेमंद साबित हो रही है। इसे किसानों के लिए और उपयोगी कैसे बनाया जा सकता है? इस विषय पर एक शोध बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के शोधार्थी सत्येंद्र कुमार द्वारा की गई है।
उन्होंने कृषि संचार में सोशल मीडिया की भूमिका विषय पर आधारित अपना यह शोध पत्र अभी हाल ही में राजीव गांधी यूनिवर्सिटी, अरुणाचल प्रदेश द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भी प्रस्तुत किया है। इस शोध के लिए राजीव गांधी विवि के कुलपति द्वारा उन्हें प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित भी किया गया।सत्येंद्र, विभाग के शिक्षक डॉ. अरविंद कुमार सिंह के मार्गदर्शन में शोध कार्य कर रहे हैं।
आज पूरे विश्व मे सोशल मीडिया का चलन तेजी से बढ़ा है और भारत के गांव भी फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया के माध्यमों से अछूते नहीं हैं। संचार के अन्य माध्यमों की तुलना में इसकी पहुंच आमजन तक अधिक है। इसको ध्यान में रखते हुए सत्येंद्र ने फेसबुक, यूट्यूब, ब्लॉग्स और अन्य सोशल प्लेटफॉर्म के माध्यम से 150 युवा किसानों, एनजीओ के सदस्यों का साक्षात्कार किया।
सत्येंद्र ने पाया कि सोशल मीडिया पर कृषि से जुड़ी जो भी जानकारी उपलब्ध है। वह क्षेत्रीय भाषा में उपलब्ध नहीं है, जिसके चलते किसान उन्हें समझ नहीं पाते। बेहतर संचार के लिए भाषा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि जानकारी हिंदी अथवा अन्य स्थानीय भाषाओं में तैयार की जाये तो यह किसानों के लिए लाभकारी साबित होगा। ऐसे ही कई सूचनाएं, जिन्हें व्यवहारिक जीवन मे लागू करना मुश्किल होता है, अथवा कृषि की ऐसी तकनीक जिसके लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। उन सूचनाओं और तकनीकों को आमजन के समझने योग्य बनाने की आवश्यकता है, जिसके सोशल मीडिया का मानव विकास में प्रभावी उपयोग संभव हो सके।