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किसी को नहीं है अलग-अलग धर्मों वाले बालिग जोड़े की शादीशुदा जिंदगी में हस्तक्षेप करने का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि विपरीत धर्मों के बालिग जोड़े की शादीशुदा जिंदगी, स्वतंत्रता और निजता में सरकार या प्राइवेट किसी व्यक्ति को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने गुरुवार को अंतरधार्मिक विवाह करने वाले 17 जोड़ों की याचिका पर सुनावई करने के दौरान यह बात कही.

कोर्ट ने पुलिस को विपरीत धर्मों के शादीशुदा बालिग जोड़े को जरूरत के मुताबिक सुरक्षा और संरक्षण देने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने विवाह पंजीकरण अधिकारी को जिला प्राधिकारी के अनुमोदन का इंतजार न कर तत्काल पंजीकरण करने का निर्देश दिया है. यदि किसी ने धोखाधड़ी या गुमराह किया है तो पक्षकारों को दीवानी व आपराधिक कार्यवाही करने का अधिकार है. साथ ही केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर विचार करने को कहा है.

अंतरधार्मिक विवाह करने वाले 17 जोड़ों की याचिका की स्वीकार

ये आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने मायरा उर्फ वैष्णवी विलास शिर्शिकर, ज़ीनत अमान उर्फ नेहा सोटी सहित अंतरधार्मिक विवाह करने वाले 17 जोड़ों की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. कोर्ट ने सभी कानूनी मुद्दों पर विचार करते हुए कहा है कि समाज, सामाजिक और आर्थिक बदलावों के दौर से गुजर रहा है. सख्त कानूनी व्याख्या संविधान की भावना को निरर्थक कर देगी.

जीवन साथी चुनना मान्यताओं या विश्वास का विषय नहीं

हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर विचार करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि अवैध धर्म परिवर्तन कानून 2021 विपरीत धर्म मानने वाले जोड़े को शादी करने पर रोक नहीं लगाता. कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की गारंटी है. नागरिकों को अपनी, परिवार की निजता की सुरक्षा का अधिकार है. कोर्ट ने साथ ही कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है. यह मान्यताओं या विश्वास का विषय नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने मायरा उर्फ वैष्णवी विलास शिर्शिकर, ज़ीनत अमान उर्फ नेहा सोटी सहित अंतरधार्मिक विवाह करने वाले 17 युगलों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिया है.

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