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विश्व के पहले गणराज्य वैशाली जहां महावीर ने लिया जन्म

  • वैशाली महोत्सव महावीर जैन की जंयती पर मनाया जाता है

पटना। वैशाली सांस्कृतिक क्रांतियों की जननी रही है। विश्व में सर्वप्रथम लोकतांत्रिक राज्य की व्यवस्था यहीं कार्यान्वित किया गया था। वैशाली भगवान बुद्ध की कार्यस्थली, जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर की जन्मभूमि और विश्व की अनन्य कलासाधिका आम्रपाली की साधना भूमि रही है। वैशाली महोत्सव जो महावीर जयंती के अवसर पर मनाया जाता हैं, उनकी अहिंसा सिद्धी की जयंती है।

भगवान महावीर के जन्म के ढाई हजार वर्ष से भी अधिक गुजर चुके है। उनकी जन्मस्थली वैशाली के पास क्षत्रिय कुंड थी। पिता राजा सिद्धार्थ थे तथा माता का नाम त्रिशला था। भगवान महावीर का मन राज-काज में नहीं लगा। भगवान महावीर द्वारा प्रचारित धर्म जैनधर्म के नाम से जाना जाता हैं। भगवान महावीर विहार करते और उपदेश देते पावापुरी पहुंचे, जहां दिवाली के दिन बहत्तर वर्ष की अवस्था में उनका निर्वाण हो गया। वैशाली के राजा विशाल का गढ़, अभिषेक, पुष्करणी, बुद्धभष्मी, स्तूप स्थली, भगवान महावीर की जन्मस्थली (वासोकुंड) जैन मंदिर, विमलकीर्ति सरोवर, काजिमस्तारी की दरगाह, चौमुखी महादेव वैशाली संग्रहालय, शांति स्तूप आदि दर्शनीय स्थल है।

वैशाली गणराज्य के महा पराक्रमी सेनाध्यक्ष सिंह सेनापति अपने युद्ध कौशल के लिए परम विख्यात थे। भगवान बुद्ध एवं भगवान महावीर के अनेक वर्षावास वैशाली में हुए। दिन गुजरते गए। वैशाली की सभ्यता समय और काल के चक्र के साथ ओझल होती गई। परंतु वैशाली की संस्कृति की अमित छाप कायम रही। विदेशी विद्वान यात्री फहियान, व्हेनसांग आदि की रचनाओं में हमे प्राचीन वैशाली के गौरव का विवरण मिलता है।

वैशाली के पास जो कुंडग्राम है वही तिथंकर महावीर का जन्म स्थान है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने पांचवे दशक में वहां की 25 एकड़ जमीन में भगवान महावीर के स्मारक भवन का शिलान्यास किया था। जापान सरकार के अनुदान से वैशाली में विश्व शांति स्तूप का निर्माण किया गया जो आज भी हर पर्यटक को अपनी ओर आकृष्ट कर रहा है।

वैशाली अपनी ऐतिहासिक महत्ता के कारण स्थापित सितारे की तरह है। वैशाली की चर्चा किए बिना तो हमारे देश का इतिहास अधूरा प्रतीत होता है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार शालिग्राम सिंह ‘ अशांत’ ने कहा है:-

वैशाली है युग को अविरल ज्योति समर्पित करने वाली।

भावी भूका आशा केंद्र, राष्ट्र के चर्चित करने वाली।।

यही वह भूमि है जहां प्रवज्या लेने के बाद सर्वप्रथम बुद्धदेव वैशाली आए थे। वैशाली ने बुद्ध देव के गंतव्य पथ का दिशा बोध कराया था। वैशाली से उनका काफी सानिध्य रहा तथा बुद्धत्व प्राप्ति के बाद भी वे प्रायः वैशाली आते रहे। भगवान बुद्ध के समय वैशाली में बौद्ध संघ का विराट समुदाय रहता था। वैशाली में ही भिक्षुणी संघ की स्थापना हुई थी। इसके माध्यम से महिलाओं को भी साधना की आधिकारिक मान्यता मिली थी। भारत के प्राचीन इतिहास में वैशाली महानगरी का उल्लेख मिलता है। इक्ष्वाकु के वंशधर तृज बिंदु की रानी अलम्बुजा के पुत्र राजा विशाल ने उक्त नगरी की स्थापना की थी।

श्रीमद् भागवत में भी वैशाली का उल्लेख

श्रीमद् भगवत में भी वैशाली नगरी का उल्लेख किया गया है। नृप विशाल के नाम पर ही इस नगरी का नाम वैशाली पड़ा। राजा दशरथ और जनकपुर के राजा सिरध्वज राजा विशाल के समकालीन थे। भगवान श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र और अपने भाई लक्ष्मण के साथ राजा जनक द्वारा आहूत स्वयंवर में भाग लेने के क्रम में वैशाली आए थे। वहां वैशाली के तत्कालीन राजा सुमति ने उनलोगो का आतिथ्य किया था। वैशाली के लिच्छवी लोग बड़े ही शूर वीर उद्यमी और पराक्रमी थे।

वैशाली का मगध राज्य से भी संपर्क था। यदा कदा वृज्जी संघ और मगध साम्राज्य से टकराव भी होते रहते थे। बौद्ध की द्वितीय धर्म संगीति 387 ई. पूर्व में वैशाली में ही संपन्न हुई थी। चौथी सदी में पाणिनी ने वृज्जि संघ का उल्लेख किया जिसके साक्ष्य काफी प्रमाणिक माने जाते है। वैशाली की अभिषेक पुष्करणी विश्व में विख्यात है। इसमें भारत की प्रायः सभी नदियों का पवित्र जल संग्रह किया गया था। वैशाली संघ के राजाओं का अभिषेक इसी पुष्करणी के जल में कराया जाता था।

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