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स्किन टू स्किन केस: सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया हाईकोर्ट का फैसला, कहा- हम इसे गलत मानते हैं

स्किन टू स्किन मामले में फैसला सुनाते हुए (Skin to Skin Case Supreme Court Verdict) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्किन टू स्किन की व्याख्या को पॉस्को में स्वीकार नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि POCSO अपराध के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क आवश्यक है. आदेश में दो आरोपियों को दोषी ठहराया गया और दो साल की जेल की सजा दी, जिन्होंने एक नाबालिग के शरीर को छुआ था.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि स्किन टू स्किन, टच भले ही न हो, लेकिन यह निंदनीय है. हम हाईकोर्ट के फैसले को गलत मानते हैं. बॉम्बे HC ने एक दोषी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि अगर आरोपी और पीड़ित के बीच ‘स्किन-टू-स्किन’ यानी त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं हुआ है तो पोस्को कानून के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है.

सुप्रीम कोर्ट से मामले में लगाई गई थी गुहार

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को निचली अदालतों के लिए मिसाल माना जाएगा तो परिणाम विनाशकारी होगा. यह एक असाधारण स्थिति को जन्म देगा. उन्होंने ये भी कहा था कि पोक्‍सो के तहत स्किन-टू-स्किन टच अनिवार्य नहीं है. उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट से इसे खारिज करने की गुहार लगाई थी.

इसलिए आरोपी को कर दिया था बरी

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि एक नाबालिग लड़की को कपड़ों पर से टटोलना पॉक्सो की धारा-8 के तहत ‘यौन उत्पीड़न’ का अपराध नहीं होगा. हाईकोर्ट का कहना था कि पॉक्सो की धारा-8 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए ‘त्वचा से त्वचा’ संपर्क होना चाहिए. हाईकोर्ट का मानना था कि यह कृत्य आईपीसी की धारा-354 आईपीसी के तहत ‘छेड़छाड़’ का अपराध बनता है.

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